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कविता

उसका अपना आप

सुधा अरोड़ा


अकेली औरत
चेहरे पर मुस्कान की तरह
गले में पेंडेंट पहनती है
कानों में बुंदे
उँगली में अँगूठियाँ
और इन आभूषणों के साथ
अपने को लैस कर
बाहर निकलती है
जैसे अपना कवच साथ लेकर निकल रही हो

पर देखती है
कि उसके कान बुंदों में उलझ गए
उँगलियों ने अँगूठियों में अपने को
बंद कर लिया
गले ने कसकर नेकलेस को थाम लिया...

पर यह क्या...
सबसे जरूरी चीज तो वह
साथ लाना भूल ही गई
जिसे इन बुंदों, अँगूठियों और नेकलेस
से बहला नहीं पाई !
उसका अपना आप -
जिसे वह अलमारी के
किसी बंद दराज में ही छोड़ आई...

 


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